what is mitochondria | Diagram of Mitochondria | Function of Mitochondria | माइटोकॉण्ड्रिया की रचना तथा कार्य
उत्तर- माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria)-
कोशिकाद्रव्य में कुछ धागेदार (Filamentous) संरचना होती है। ये लग-भग सभी वायवीय कोशिका, जैसे-उच्च पौधे, जीव तथा कुछ छोटे जीव जैसे-कवक, शैवाल तथा प्रोटोजोआ की कोशिकाओं में पाये जाते हैं। इनको झिल्ली लिपोप्रोटीन की बनी होतो है जिसमें बहुत से एन्जाइम उपस्थित होते हैं, जो उपापचय तथा श्वसन क्रियाओं में भाग लेते हैं और ऊर्जा उत्पन्न करते हैं, जिसके कारण इनको कोशिका का ऊर्जा घर (Power house) भी कहते हैं। इनके मैट्रिक्स में DNA तथा राइबोसोम भो उपस्थित होता है।
माइटोकॉण्ड्रिया को सबसे पहले कोलिकर (Kollikar) ने सन् 1850 में कीटों को मांसपेशियों में देखा। सन् 1882 में फ्लेमिंग (Flemming) ने इनको फाइला (Fila) नाम दिया। तथा वर्तमान नाम माइटोकॉण्ड्रिया का नाम बेण्डा (Benda) ने सन् 1897 में दिया।
वितरण -
स्तनियों के RB.Cs. के अतिरिक्त सभी यूकैरियोटिक कोशिकाओं में यह पाया जाता है। यह केन्द्रक के चारों ओर पाया जाता है। यह प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में नहीं पाया जाता।
संख्या-
प्रोटोजोआ का एक सदस्य माइक्रोमोनास की कोशिका में केवल एक माइटोकॉण्ड्यिा होता है, जबकि कोटों की उड़न पेशियों में इनकी संख्या लाखों तक होती है। सी-अर्चिन के एक अण्डे में इसको संख्या डेढ़ लाख तक हो सकती है।
आकार-
इसकी मोटाई 0.5µ से 10 तक तथा लम्बाई 1.5 से 7 तक होती है।
structure of Mitochondria आकृति
ये तन्तुनुमा लम्बे धागे के समान हो सकते हैं। इसका आकार कोशिका की कार्यिकी के आधार पर बदल जाता है, जो टेनिस रेकेट के आकार के सामान होता हैं।
अतिसूक्ष्म संरचना -Diagram of mitochondria
इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की सहायता से देखने पर प्रत्येक माइटोकॉण्ड्रिया दोहरी भित्ति से बना दिखाई देता है। ये दोनों झिल्लियों में प्रत्येक को मोटाई 75Å होती है, जो यूनिट मेम्ब्रेन या प्लाज्मा झिल्लो का हो रूप है। बाह्य झिल्लो चिकनी होती है, यह झिल्ली माइटोकॉण्डिया के भीतर के कक्ष तथा सायटोप्लाज्म को पृथक् करती है। भौतरी झिल्लो अन्दर से कई जगह पर उँगलीनुमा प्रवर्षों में बेटी रहती है, जिनको क्रिस्टी कहा जाता है, इस झिल्ली को बाहरी सतह को C-face तथा भोतरी सतह को M-face कहते हैं। बाह्य झिल्ली तथा भीतरी झिल्ली के बीच लगभग 60-80 A चौड़ा रिक्त स्थान होता है, जिसमें द्रव भरा होता है, इस खालो स्थान को पेरिकाण्डियल स्थान (Perichondrial space) कहते हैं। भीतरी झिल्लों के अन्दर एक कक्ष होता है। यह माइटोकॉण्ड्यिा को केन्द्रीय गुहा होती है, इसमें भरे पदार्थ
को मैट्रिक्स कहा जाता है। मैट्रिक्स में कई तरह के एन्जाइम भरे होते हैं, जो कोशिकीय श्वसन को सम्पन्न करात हैं। क्रिस्टों को जमावट माइटोकाण्डिया में कुछ इस तरह होती है कि इससे भीतरी कक्ष कई खानों में बँटा प्रतोत होता है अथवा इसको भोतरी सतह का क्षेत्रफल रासायनिक क्रियाओं को जगह उपलब्ध कराने के प्रयास में कई गुना बढ़ जाता है। इन क्रिस्टी पर एलीमेण्ट्री पार्टिकल
प्रत्येक F, कण में तीन भाग होते हैं-
(1) आधार भाग -
जो 80Å व्यास का होता है। इसके द्वारा F, कण भीतरी झिल्ली से जुड़े होते हैं।
(2) वृन्त -
जिसका व्यास 33Å होता है, यह गोलाकार होता है।
(3) शीर्ष भाग-
यह 50Å लम्बा होता है। यह आधार भाग तथा शीर्ष भाग को जोड़ता है। यह F, कण वास्तव में एक एन्जाइम है, जिसे ATPase कहा जाता है, जो ADP तथा अकार्बनिक फॉस्फेट को जोड़कर AIP बनाता है, अर्थात् ऐडीनोसीन डाइफॉस्फेट से ऐडोनोसीन ट्राइफॉस्फेट बनाता है। यह AIP सभी प्रकार को कोशिकाओं में जहाँ भी ऊर्जा की जरूरत हो उसे पूरा करता है तथा पुनः ADP में बदल जाता है।
माइटोकॉण्ड्रियल राइबोसोम (Mitochondrial ribosome)- माइटोकॉण्ड्रिया के मैट्रिक्स में राइबोसोम भी होते हैं, जो 70 S प्रकार के होते हैं तथा बैक्टीरिया में उपस्थित राइबोसोम के समान होते हैं। माइटोकॉण्ड्रिया में वे सभी घटक पाये जाते हैं, जो प्रोटीन संश्लेषण, DNA संश्लेषण, RNA के निर्माण, RNA तथा ऐमीनो ऐसिड को प्रेरित करने वाले एन्जाइम उपस्थित होते हैं।
माइटोकॉण्ड्यिल DNA (Mitochondrial DNA) - माइटोकॉण्ड्रिया के मैट्रिक्स में DNA के एक या दो अणु होते हैं। ये DNA अधिक कुण्डलित, दोहरे स्ट्रैण्ड वाले तथा गोल होते हैं। ये DNA बैक्टीरिया के DNA के समान होते हैं। इनमें DNA अणु के विपरीत (GC) को मात्रा अधिक होती है। m-DNA केन्द्रक DNA से लम्बाई में छोटा होता है।
कार्य (Function of mitochondria)
(1) कार्बोहाइड्रेट का ऑक्सीकरण (Oxidation of carbohydrate)- कार्बोहाइड्रेट का ऑक्सीकरण माइटोकॉण्ड्रिया में होता है, जो विभिन्न चरणों में पूरा होता है।
(2) ग्लाइकोलिसिस (Glycolysis) - ऑक्सीजन की के होने पर में ग्लूकोज का ऑक्सीकरण होता है तथा पायरुविक ऐसिड में बदल देता है।
(3) ऑक्सीडेटिव डीकार्बोक्सीलेशन (Oxidative decarboxylation) - ऑक्सीजन की उपस्थिति में पायरुविक अम्ल ऐसीटिल कोएन्जाइम के साच माइटोकॉण्डिया के मैट्रिक्स में क्रिया कर ऐसीटिल कोएन्जाइम के दो अणु बनाता है व CO₂ का निर्माण करता है।
(4) क्रेव्स चक्क (Krebs Cycle)- माइटोकॉण्ड्यिा के मैट्रिक्स में ऐसौटिल को-एन्जाइम ऑक्सीजन की उपस्थिति में कई चरणों में क्रिया करता है तथा CO, व H+ देता है।
(5) इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला (Electron Transport Chain)- माइटोकॉण्ड्रिया के मैट्रिक्स में क्रेब्स चक्र के दौरान, जो H+ निकलते हैं, उनको परिवहन करने के लिए एन्जाइम उपस्थित होते हैं, जो इलेक्ट्रॉनों का परिवहन करते हैं, वे सभी एक श्रृंखला में होते हैं, सभी मिलकर इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रृंखला बनाते हैं।
(6) ATP का निर्माण (Formation of ATP)- माइटोकॉण्ड्रिया को भीतरी दीवार में उपस्थित F, कण में कुछ एन्जाइम उपस्थित होते हैं, जो ATP का संश्लेषण करते हैं।
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