Do Lie Detectors Actually Work?, क्या झूठ डिटेक्टर वास्तव में काम करते हैं?

Do Lie Detectors Actually Work ?, क्या झूठ डिटेक्टर वास्तव में काम करते हैं? वैज्ञानिक समुदाय में झूठ डिटेक्टरों, विशेष रूप से पॉलीग्राफ परीक्षणों की

Do Lie Detectors Actually Work ?, क्या झूठ डिटेक्टर वास्तव में काम करते हैं?

Do Lie Detectors Actually Work?


Table Of Content 

  • पॉलीग्राफ परिभाषा 
  • वैज्ञानिक सहमति का अभाव:
  • त्रुटि दर -
  • प्रतिवाद 
  • व्यक्तिपरक व्याख्या:
  • कानूनी स्वीकार्यता
  • निष्कर्ष:

नमस्कार !  

आप सब ने तो फिल्म में देखा ही होगा की किसी मुजरिम से सच्चाई जानने के लिए एक विशेष प्रकार के मशीन का इस्तेमाल किया जाता है उसे पॉलीग्राफ,झूठ डिटेक्टरों कहते है| आज की इस पोस् में हम Do Lie Detectors Actually Work ?, क्या झूठ डिटेक्टर वास्तव में काम करते हैं ? के बारे में पढ़ेंगे | 

वैज्ञानिक समुदाय में झूठ डिटेक्टरों, विशेष रूप से पॉलीग्राफ परीक्षणों की विश्वसनीयता पर काफी चर्चा का माहौल बानी  होती है। जबकि पॉलीग्राफ परीक्षण शारीरिक प्रतिक्रियाओं जैसे हृदय गति, रक्तचाप, श्वसन और त्वचा की चालकता को डिटेक्ट करते है, मापते हैं, यह निश्चित नहीं किया गया है कि ये प्रतिक्रियाएं विशिष्ट रूप से झूठ बोलने से जुड़ी हैं। तनाव, चिंता, भय या अन्य भावनाएं भी समान शारीरिक परिवर्तन का कारण बन सकती हैं, जिससे गलत सकारात्मक परिणाम (निर्दोष व्यक्ति को दोषी के रूप में पहचानना) हो सकता है।


यहाँ कुछ प्रमुख बिंदु दिए गए हैं

वैज्ञानिक सहमति का अभाव:

अधिकांश मनोवैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि इस बात का बहुत कम प्रमाण है कि पॉलीग्राफ परीक्षण सटीकता से झूठ का पता लगा सकते हैं। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की 2003 की एक व्यापक समीक्षा में निष्कर्ष निकाला गया कि "इस उम्मीद के लिए बहुत कम आधार है कि एक पॉलीग्राफ परीक्षण में बहुत उच्च सटीकता हो सकती है।"

त्रुटि दर -

अध्ययनों से पता चला है कि पॉलीग्राफ परीक्षणों में महत्वपूर्ण त्रुटि दर होती है, जिसमें निर्दोष लोग परीक्षण में विफल हो जाते हैं और दोषी लोग इसे पास कर लेते हैं। कुछ आलोचकों का तर्क है कि उनकी सटीकता केवल संयोग से थोड़ी बेहतर है।

प्रतिवाद 

प्रशिक्षित व्यक्ति कुछ तकनीकों का उपयोग करके पॉलीग्राफ परीक्षण के परिणामों को नियंत्रित या "धोखा" दे सकते हैं।

व्यक्तिपरक व्याख्या:

पॉलीग्राफ चार्ट की व्याख्या व्यक्तिपरक हो सकती है और परीक्षक के कौशल और पूर्वाग्रहों से प्रभावित हो सकती है।

कानूनी स्वीकार्यता

अधिकांश न्यायालयों में पॉलीग्राफ परीक्षण के परिणाम सबूत के तौर पर स्वीकार्य नहीं हैं क्योंकि उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है। भारत में भी, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि आरोपी की सहमति के बिना लाई डिटेक्टर परीक्षण नहीं किए जाने चाहिए और इनके निष्कर्षों को अदालत में सबूत के तौर पर नहीं माना जा सकता है।

हालांकि, कुछ समर्थक तर्क देते हैं कि जब अच्छी तरह से प्रशिक्षित परीक्षकों द्वारा मानकीकृत प्रक्रियाओं का उपयोग करके प्रशासित किया जाता है, तो पॉलीग्राफ कुछ स्थितियों में उपयोगी हो सकता है, खासकर जांच के शुरुआती चरणों में। उनका उपयोग अक्सर संदिग्धों को डराने और स्वीकारोक्ति प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

निष्कर्ष:

सभी तथ्यों को देखने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि, वैज्ञानिक प्रमाण झूठ डिटेक्टरों, विशेष रूप से पॉलीग्राफ परीक्षणों की उच्च विश्वसनीयता का समर्थन नहीं करते हैं। उनकी त्रुटि दर, प्रतिवाद की संभावना और व्यक्तिपरक व्याख्या की प्रकृति उन्हें सच्चाई का एक अचूक उपकरण नहीं बनाती है। इसलिए, उनके परिणामों पर सावधानी से विचार किया जाना चाहिए और उन्हें अन्य जांच संबंधी जानकारी के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।




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