छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति की भारत में पहचान- Education Field Hindi

छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति की भारत में पहचान- Education Field Hindi छत्तीसगढ़ भारत का एक अनूठा राज्य है, जो अपनी समृद्ध लोकसंस्कृति, पारंपरिक कलाओं,

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छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति एवं परंपरा
छत्तीसगढ़ राज्य की संस्कृति : एक विस्तृत अध्ययन

छत्तीसगढ़ भारत का एक अनूठा राज्य है, जो अपनी समृद्ध लोकसंस्कृति, पारंपरिक कलाओं, खानपान, रीति-रिवाजों, लोकनृत्यों, त्योहारों और आदिवासी जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध है। यह राज्य अपनी ऐतिहासिक विरासत और लोक परंपराओं को संजोए हुए है, जो इसे एक विशिष्ट पहचान प्रदान करती हैं।

1. छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

छत्तीसगढ़ का इतिहास प्राचीन समय से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र महाकाव्यकाल में 'दक्षिण कोशल' के रूप में प्रसिद्ध था। यह वही स्थान है जहाँ माता कौशल्या का जन्म हुआ था, जो भगवान श्रीराम की माता थीं। यही कारण है कि इस राज्य की संस्कृति पर रामायण काल का भी प्रभाव देखने को मिलता है।

यहाँ की संस्कृति पर बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिन्दू धर्म का व्यापक प्रभाव रहा है। सिरपुर, मल्हार और रतनपुर जैसे ऐतिहासिक स्थल यहाँ की समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं। राज्य में विभिन्न राजवंशों का शासन रहा है, जिनमें चालुक्य, कलचुरी और मराठा राजवंश प्रमुख हैं।

2. छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति

छत्तीसगढ़ की संस्कृति मुख्य रूप से ग्रामीण और आदिवासी परंपराओं से प्रभावित है। यहाँ की संस्कृति में लोककला, हस्तशिल्प, नृत्य, संगीत और खानपान का विशेष स्थान है।

2.1 छत्तीसगढ़ की लोककला

छत्तीसगढ़ की लोककला इसकी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह राज्य विभिन्न प्रकार की पारंपरिक कलाओं के लिए प्रसिद्ध है:

गोंड चित्रकला

 गोंड जनजाति की यह कला प्राकृतिक रूपों और जनजीवन को दर्शाती है।

सोहराई और पिथौरा चित्रकला – 

यह लोकचित्रकारी मुख्यतः घर की दीवारों और फर्श पर बनाई जाती है।

बस्तर की धातु कला (ढोकरा कला) –

 बस्तर क्षेत्र में बनने वाली यह कला पीतल और अन्य धातुओं से आकर्षक मूर्तियाँ बनाने के लिए प्रसिद्ध है।

माटी कला –

 छत्तीसगढ़ में मिट्टी से विभिन्न प्रकार की मूर्तियाँ और बर्तन बनाए जाते हैं, जिनका उपयोग धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यों में होता है।

2.2 छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य

छत्तीसगढ़ की संस्कृति लोकनृत्यों से भी समृद्ध है। विभिन्न समुदायों के अपने विशिष्ट नृत्य होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

पंथी नृत्य – 

यह सतनाम पंथ के अनुयायियों द्वारा गुरु घासीदास की शिक्षाओं के प्रचार हेतु किया जाता है।

राउत नाचा – 

इसे यादव समुदाय के लोग करते हैं, जो भगवान कृष्ण की लीलाओं से प्रेरित होता है।

सुआ नृत्य – 

यह महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य है, जो दीपावली के अवसर पर संपन्न होता है।

गौर नृत्य – 

यह मुरिया जनजाति का एक प्रमुख नृत्य है, जिसमें गौर (बाइसन) की गतिक्रिया की नकल की जाती है।

कर्मा नृत्य – 

यह विशेष रूप से सरगुजा और बस्तर क्षेत्र में किया जाता है और प्रकृति पूजा से जुड़ा होता है।

2.3 छत्तीसगढ़ का लोकसंगीत

छत्तीसगढ़ का लोकसंगीत यहाँ की परंपराओं और त्योहारों का अभिन्न हिस्सा है। यहाँ के प्रमुख लोकगीतों में ददरिया, सोहर, फाग, विवाह गीत, जस गीत और भजन प्रमुख हैं।

ददरिया – 

यह प्रेम और मिलन का गीत है, जिसे लोक मेलों और त्योहारों में गाया जाता है।

सोहर गीत –

 ये गीत संतान जन्म के अवसर पर गाए जाते हैं।

फाग गीत – 

होली के अवसर पर गाए जाने वाले गीत होते हैं।

जस गीत – 

ये गीत देवी-देवताओं की स्तुति में गाए जाते हैं।

पंडवानी – 

यह महाभारत की कहानियों पर आधारित एक प्रमुख गायन शैली है, जिसे प्रसिद्ध कलाकार तीजन बाई ने लोकप्रिय बनाया।

3. छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्योहार

छत्तीसगढ़ में अनेक पर्व-त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। इनमें पारंपरिक और आदिवासी त्योहार दोनों शामिल हैं।

बस्तर दशहरा –

 यह छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा त्योहार है, जो बस्तर क्षेत्र में 75 दिनों तक मनाया जाता है।

मड़ई मेला – 

यह आदिवासी समाज द्वारा मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें देवी-देवताओं की पूजा होती है।

गोंचा (रथयात्रा) – 

यह पुरी की रथयात्रा के समान होता है और इसे कांकेर में विशेष रूप से मनाया जाता है।

छेरछेरा पर्व – 

यह फसल कटाई के बाद मनाया जाता है और भिक्षाटन की परंपरा से जुड़ा होता है।

हरेली पर्व – 

कृषि से जुड़ा यह त्योहार किसानों द्वारा मनाया जाता है।

तीजा और करवाचौथ – 

यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है।

4. छत्तीसगढ़ की पारंपरिक वेशभूषा

छत्तीसगढ़ की वेशभूषा यहाँ की पारंपरिक और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है।

पुरुष धोती, कुर्ता और गमछा पहनते हैं।

महिलाएँ लुगड़ा (साड़ी का एक प्रकार) पहनती हैं, जिसे खास तरीके से लपेटा जाता है।

आदिवासी महिलाएँ कंठी माला, कड़े और चांदी के गहने पहनती हैं।

5. छत्तीसगढ़ का खानपान

छत्तीसगढ़ को "धान का कटोरा" कहा जाता है, इसलिए यहाँ के खानपान में चावल प्रमुख भूमिका निभाता है।

चीला – चावल के आटे से बनने वाला एक स्वादिष्ट व्यंजन।

फरा – चावल के आटे से बनी पकौड़ियाँ, जो हेल्दी और स्वादिष्ट होती हैं।

ठेठरी-खुर्मी – पारंपरिक मिठाई और नमकीन स्नैक।

अंगाकर रोटी – कोयले की आँच पर पकाई जाने वाली मोटी रोटी।

बफौरी – चना दाल से बनने वाला हल्का नाश्ता।

रोटी-भाजी – गाँवों में आमतौर पर खाया जाने वाला भोजन।

महुआ शराब – महुआ फूलों से बनने वाली पारंपरिक शराब, जो आदिवासियों के बीच प्रसिद्ध है।

निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ अपनी अनूठी लोकसंस्कृति, नृत्य, संगीत, कला, खानपान और त्योहारों के लिए प्रसिद्ध है। यह राज्य अपनी प्राचीन परंपराओं को संजोए हुए आधुनिकता की ओर भी बढ़ रहा है। यहाँ की संस्कृति में आदिवासी समाज का गहरा प्रभाव है, जो इसे और भी रंगीन और विविधतापूर्ण बनाता है। चाहे लोकनृत्य हो, संगीत हो, खानपान हो या परंपराएँ, छत्तीसगढ़ की संस्कृति भारत की समृद्ध धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।


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