Bhoramdev Mandir भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ का खजुराहो

Bhoramdev Mandir भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ का खजुराहो भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम (कवर्धा) जिले में स्थित एक प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है, जिसे "छत्

हम आपके लिए Bhoramdev Mandir  छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में जानकारी पढ़ने को मिलेगा। छत्तीसगढ़ भारत का एक खूबसूरत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर राज्य है,  यदि आप घूमने के शौकीन हैं, तो छत्तीसगढ़ में कई स्थान हैं जहां आपको एक अनोखा अनुभव मिलेगा। इसे पढ़ने में आसानी हो, इसलिए हमने इसे अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया है,  हमें आशा है Bhoramdev Mandir  को पढ़कर आपको अच्छा लगेगा|

तो चलिए Bhoramdev Mandir के बारे में पढना शुरू करते है |

Bhoramdev Mandir

Bhoramdev Mandir  भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ का खजुराहो

परिचय

भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम (कवर्धा) जिले में स्थित एक प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है, जिसे "छत्तीसगढ़ का खजुराहो" भी कहा जाता है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और अपनी उत्कृष्ट शिल्पकला, अद्भुत वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।

भारत अपने अद्वितीय ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। प्राचीन मंदिर, गुफाएँ, किले, और ऐतिहासिक स्थल भारत की समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं। ऐसा ही एक अद्भुत स्थल छत्तीसगढ़ में स्थित भोरमदेव मंदिर है, जिसे "छत्तीसगढ़ का खजुराहो" कहा जाता है। यह मंदिर अपनी अद्वितीय वास्तुकला, मूर्तिकला और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यटन और ऐतिहासिक अनुसंधान के लिए भी एक महत्वपूर्ण स्थल है।

भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के कबीरधाम (कवर्धा) जिले में स्थित एक प्रसिद्ध प्राचीन शिव मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और नागर शैली में निर्मित एक उत्कृष्ट मंदिर है। मंदिर की भित्तियों पर उकेरी गई विभिन्न प्रकार की मूर्तियाँ इसे विशेष बनाती हैं। इन मूर्तियों में अनेक कामुक चित्रण भी मिलते हैं, जिनके कारण इसे "छत्तीसगढ़ का खजुराहो" कहा जाता है। यह मंदिर मध्यकालीन भारतीय स्थापत्य और धार्मिक परंपराओं का अद्भुत उदाहरण है।

भोरमदेव मंदिर का इतिहास

भोरमदेव मंदिर का निर्माण 7वीं से 11वीं शताब्दी के बीच नागवंशी शासकों द्वारा करवाया गया था। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के नागवंशी, फणिनागवंशी और कलचुरी राजाओं के शासनकाल में विकसित हुआ।

नागवंशी शासकों का योगदान

नागवंशी शासकों ने इस क्षेत्र में कई मंदिरों का निर्माण करवाया, जिनमें भोरमदेव मंदिर सबसे महत्वपूर्ण है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर का निर्माण राजा गोपालदेव द्वारा 11वीं शताब्दी में करवाया गया था।

कलचुरी शासनकाल

14वीं शताब्दी में कलचुरी राजाओं ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण और विस्तार किया। इस दौरान मंदिर की दीवारों पर और अधिक शिल्पकला उकेरी गई।

ब्रिटिश काल और वर्तमान संरक्षण

ब्रिटिश काल में इस मंदिर को पुरातात्विक महत्व प्राप्त हुआ। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया गया।

भोरमदेव मंदिर की वास्तुकला

मंदिर की संरचना

गर्भगृह (Sanctum) – इसमें भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित है।

अंतराल (Vestibule) – यह गर्भगृह और मंडप को जोड़ने वाला भाग है।

मंडप (Hall) – यह सभा मंडप है, जहाँ भक्त एकत्रित होते हैं।

शिखर (Tower) – नागर शैली का शिखर मंदिर की ऊँचाई को दर्शाता है।

शिल्पकला और मूर्तिकला

मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं, अप्सराओं, मिथुन युगल, युद्ध, शिकार, नृत्य, संगीत, और पशु-पक्षियों की सुंदर मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। कुछ मूर्तियाँ खजुराहो मंदिर की मूर्तियों से मिलती-जुलती हैं।

भोरमदेव मंदिर की वास्तुकला नागर शैली की है, जो उत्तर भारत के मंदिरों की प्रमुख शैली है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

भोरमदेव मंदिर का निर्माण 7वीं से 11वीं शताब्दी के बीच नागवंशी शासकों द्वारा किया गया था। यह मंदिर खजुराहो और कोणार्क की शैली में बना हुआ है और इसकी दीवारों पर की गई सुंदर और जटिल मूर्तिकला इसे एक ऐतिहासिक धरोहर बनाती है।

वास्तुकला और मूर्तिकला:

नागर शैली में निर्माण – मंदिर नागर शैली में बना हुआ है, जिसमें शिखर की विशेषता प्रमुख रूप से दिखाई देती है।

कामुक मूर्तियाँ – मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं, अप्सराओं, मिथुन युगल (कामुक मूर्तियाँ), नर्तक-गायक, और युद्ध व शिकार के दृश्यों की उत्कृष्ट नक्काशी की गई है।

गर्भगृह – मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है, जिसे श्रद्धालु पूजते हैं।

मंडप और सभा गृह – मंदिर में एक बड़ा मंडप (प्रवेश कक्ष) और सभा मंडप है, जिसमें सुंदर स्तंभ और छत पर अद्भुत नक्काशी की गई है।

भोरमदेव मंदिर समूह:

भोरमदेव क्षेत्र में कई अन्य मंदिर भी हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

मदवा महल – यह एक विवाह मंडप के आकार में बना मंदिर है, जिसे राजा रामचंद्र देव ने अपनी पत्नी रानी अंबिका देवी के लिए बनवाया था।

चतुर्भुज मंदिर – यह मंदिर भी नागर शैली में बना है और इसमें विष्णु, शिव और अन्य देवताओं की मूर्तियाँ हैं।

राम मंदिर और अन्य छोटे मंदिर – भोरमदेव मंदिर परिसर के आसपास कई छोटे-छोटे मंदिर भी स्थित हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:

यह मंदिर छत्तीसगढ़ के सबसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है और यहाँ प्रतिदिन बड़ी संख्या में भक्त दर्शन करने आते हैं।

महाशिवरात्रि और अन्य शिव-पर्वों पर यहाँ भव्य उत्सव होते हैं।

मंदिर में लोक संस्कृति और धार्मिक आयोजनों का आयोजन होता रहता है।

पर्यटन और प्राकृतिक सौंदर्य:

भोरमदेव मंदिर केवल धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह अपने प्राकृतिक सौंदर्य के कारण भी प्रसिद्ध है। मंदिर का परिसर पहाड़ियों और हरे-भरे जंगलों से घिरा हुआ है, जो इसे एक रमणीय पर्यटन स्थल बनाता है।

कैसे पहुँचे?

निकटतम शहर: कवर्धा (18 किमी)

निकटतम रेलवे स्टेशन: रायपुर रेलवे स्टेशन (125 किमी)

निकटतम हवाई अड्डा: स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट, रायपुर (130 किमी)

सड़क मार्ग: रायपुर, बिलासपुर, जबलपुर और अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी सड़क सुविधा उपलब्ध है।

भोरमदेव मंदिर न केवल छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय मंदिर वास्तुकला की एक उत्कृष्ट कृति भी है। इतिहास, धर्म और प्रकृति प्रेमियों के लिए यह एक आदर्श स्थान है, जिसे हर किसी को एक बार जरूर देखना चाहिए।

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