Section 194A - TDS on Interest Other than Interest on Securities

Section 194A - TDS on Interest Other than Interest on Securities Section 194A भारतीय आयकर अधिनियम की एक महत्वपूर्ण धारा है, जो ब्याज (Interest) पर

Section 194A - TDS on Interest Other than Interest on Securities


Section 194A भारतीय आयकर अधिनियम की एक महत्वपूर्ण धारा है, जो ब्याज (Interest) पर स्रोत पर कर कटौती (TDS - Tax Deducted at Source) से संबंधित है। यह धारा बैंकों, वित्तीय संस्थानों या अन्य देनदारों द्वारा दिए जाने वाले ब्याज पर TDS काटने के लिए लागू होती है।

आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 194A प्रतिभूतियों पर ब्याज के अलावा अन्य ब्याज आय पर स्रोत पर कर कटौती (TDS) से संबंधित है। यह धारा उन सभी व्यक्तियों पर लागू होती है जो भारत के निवासी को ब्याज का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं।

Section 194A - TDS on Interest Other than Interest on Securities, धारा 194ए: प्रतिभूतियों पर ब्याज के अलावा अन्य ब्याज पर टीडीएस


Applicability Of Section 194A?, धारा 194A की प्रयोज्यता?

धारा 194A मुख्य रूप से भारत के निवासियों को प्रतिभूतियों पर ब्याज के अलावा अन्य ब्याज आय के भुगतान पर लागू होती है। इसकी प्रयोज्यता को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

1. भुगतानकर्ता:

  • यह धारा किसी भी व्यक्ति पर लागू होती है जो भारत के निवासी को ब्याज का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है।
  • यदि कोई व्यक्ति या एचयूएफ HUF धारा 44AB के तहत ऑडिट के लिए उत्तरदायी है (उदाहरण के लिए, यदि उनका व्यवसाय टर्नओवर ₹1 करोड़ से अधिक है या पेशेवर आय ₹50 लाख से अधिक है), तो वे भी इस धारा के तहत TDS काटने के लिए उत्तरदायी होंगे।
  • यह धारा अनिवासियों को किए गए ब्याज भुगतान पर लागू नहीं होती है। ऐसे भुगतानों को आयकर अधिनियम की धारा 195 के तहत शासित किया जाता है।

2. प्राप्तकर्ता:

  • यह धारा केवल भारत के निवासियों पर लागू होती है जो ब्याज आय प्राप्त कर रहे हैं।

3. ब्याज की प्रकृति:

  • यह धारा प्रतिभूतियों पर ब्याज को छोड़कर सभी प्रकार की ब्याज आय पर लागू होती है। इसमें शामिल हैं:
  • सावधि जमा (Fixed Deposits) पर ब्याज
  • आवर्ती जमा (Recurring Deposits) पर ब्याज
  • ऋणों और अग्रिमों पर ब्याज (गैर-बैंकिंग संस्थानों द्वारा दिए गए)
  • कंपनी जमा पर ब्याज
  • बचत बैंक खातों पर ब्याज (हालांकि, इस पर टीडीएस कुछ शर्तों के अधीन है)

संक्षेप में, धारा 194A तब लागू होती है जब एक निवासी व्यक्ति (कुछ विशिष्ट व्यक्तियों/एचयूएफ को छोड़कर) किसी अन्य निवासी को प्रतिभूतियों पर ब्याज के अलावा ब्याज का भुगतान करता है और ब्याज की कुल राशि निर्धारित सीमा से अधिक होती है।

When Is TDS Under Section 194A Deducted, धारा 194A के अंतर्गत टीडीएस कब काटा जाता है?

धारा  194A के अंतर्गत  ब्याज (Interest) पर TDS (Tax Deducted at Source) तब काटा जाता है जब एक निश्चित सीमा से अधिक ब्याज का भुगतान किया जाता है। नीचे विस्तार से समझाया गया है:

ब्याज आय को प्राप्तकर्ता के खाते में जमा करते समय: 
 जब ब्याज की राशि प्राप्तकर्ता के खाते में क्रेडिट की जाती है, तो टीडीएस काटा जाता है। यह एंट्री पास करने के समय या ब्याज बुक करने के समय हो सकता है।

ब्याज का भुगतान करते समय:
यदि ब्याज का भुगतान नकद, चेक, ड्राफ्ट या किसी अन्य माध्यम से किया जाता है, तो भुगतान करते समय टीडीएस काटा जाता है।

बचत बैंक खातों पर अर्जित ब्याज टीडीएस के अधीन नहीं है।

TDS तब काटा जाएगा जब ब्याज का भुगतान निम्न द्वारा किया जाए:

बैंक
को-ऑपरेटिव बैंक
पोस्ट ऑफिस (जैसे SCSS, RD आदि)
कोई अन्य कंपनी या व्यक्ति (जो ऑडिट के तहत हो)

ब्याज आय को प्राप्तकर्ता के खाते में जमा करते समय।

ब्याज का भुगतान नकद, चेक या ड्राफ्ट द्वारा करते समय।


3 ब्याज की सीमा (Threshold Limit):


TDS तब काटा जाता है जब ब्याज की राशि एक वित्तीय वर्ष में निम्नलिखित सीमाओं से अधिक हो:

                   भुगतानकर्ता                                                                  सीमा (Threshold) 
 ------------------------------------------------------------------------------------------------------------
  बैंक / को-ऑपरेटिव बैंक / पोस्ट ऑफिस                                    ₹40,000 (सामान्य व्यक्ति के लिए)
                                                                                             ₹50,000 (वरिष्ठ नागरिकों के लिए) 
  अन्य (जैसे कंपनियाँ, व्यापारी आदि)                                           ₹5,000                           

उदाहरण: यदि किसी बैंक द्वारा एक सामान्य व्यक्ति को ₹45,000 का ब्याज दिया जाता है, तो ₹40,000 की सीमा पार होने पर TDS काटा जाएगा।

संक्षेप में, टीडीएस ब्याज की आय पर तभी काटा जाता है जब वह या तो प्राप्तकर्ता के खाते में जमा की जाती है या उसे वास्तव में भुगतान किया जाता है, जो भी घटना पहले घटित हो।

TDS Rates:



                                शर्त                                                      TDS कटेगा?                 
   -----------------------------------------------------------------------------------------------------------
                  FD ब्याज ₹45,000 है और PAN है                   हाँ (₹40,000 से ऊपर)      
                  RD ब्याज ₹4,000 है                                       नहीं (₹5,000 से कम)        
                  वरिष्ठ नागरिक को ₹49,000 ब्याज                     नहीं (₹50,000 से कम)       
                  PAN नहीं दिया गया है                                      हाँ, 20% की दर से          
                  फॉर्म 15H दिया है                                            नहीं (यदि पात्रता पूरी हो) 


यदि प्राप्तकर्ता स्थायी खाता संख्या (पैन) प्रदान करता है: 10%

यदि प्राप्तकर्ता पैन प्रदान नहीं करता है: 20%

इन दरों में कोई अधिभार, शिक्षा उपकर या एसएचईसी नहीं जोड़ा जाएगा।

टीडीएस जमा करने की समय सीमा:

अप्रैल से फरवरी के महीने में काटा गया कर अगले महीने की 7 तारीख को या उससे पहले जमा किया जाना चाहिए।

मार्च के महीने में काटा गया कर 30 अप्रैल को या उससे पहले जमा किया जाना चाहिए।

टीडीएस से छूट:

कुछ प्रकार की ब्याज आय धारा 194ए के तहत टीडीएस से मुक्त हैं। इनमें शामिल हैं:

* सहकारी समितियों द्वारा अपने सदस्यों को भुगतान किया गया ब्याज।

* साझेदारी फर्मों द्वारा अपने भागीदारों को भुगतान किया गया ब्याज।

* बैंकों, भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी), भारतीय यूनिट ट्रस्ट (यूटीआई) या अन्य बीमा कंपनियों को भुगतान किया गया ब्याज।

* कुछ विशिष्ट सरकारी प्रतिभूतियों पर ब्याज।

* मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए मुआवजे पर ब्याज, यदि मुआवजा ₹50,000 से अधिक न हो।

फॉर्म 15G और 15H

यदि किसी व्यक्ति की कुल आय कर योग्य सीमा से कम है, तो वे टीडीएस कटौती से बचने के लिए फॉर्म 15जी (60 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों के लिए) या फॉर्म 15एच (वरिष्ठ नागरिकों के लिए) जमा कर सकते हैं।

धारा 194A आयकर कानून का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो यह सुनिश्चित करता है कि ब्याज आय पर कर स्रोत पर ही काट लिया जाए, जिससे कर चोरी को कम किया जा सके और सरकार के लिए राजस्व संग्रह सुचारू हो सके।





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